यह बात बिल्कुल सही है कि लगभग हर किसी के पास जीवन के अनुभवों से भरा एक थैला होता है। लेकिन केवल खुलकर न कह पाने की झिझक या डर के कारण, बहुत से लोग उन्हें किसी से साझा नहीं कर पाते — और इसीलिए वे अनुभव अनकहे ही रह जाते हैं।
मैंने एक बात पर ध्यान दिया है — कठिन समय हर किसी की ज़िंदगी में आता है, लेकिन उसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वह ज़िंदगी के किस दौर में आता है।
अगर ये कठिन समय 50 वर्ष की उम्र से पहले आता है, तो वह व्यक्ति को जीवन के बारे में सिखाने के लिए होता है।
लेकिन 50 के बाद आने वाला कठिन समय, जीवन को एक तरह से नरक जैसे अनुभव में बदल सकता है।
इसका मतलब ये है कि अगर किसी को 50 साल की उम्र से पहले कठिन समय झेलना पड़ता है, तो वह अच्छा है — क्योंकि उस समय वह व्यक्ति सीख सकता है, खुद को बदल सकता है और मेहनत से आगे बढ़ सकता है।
जिसमें आत्मविश्वास और क्षमता होती है, वह उस समय से ऊपर उठ सकता है।
लेकिन जिसके अंदर ये ताकतें नहीं होतीं, वह शायद टूट जाए।
और अगर कोई 50 की उम्र के बाद कठिनाई का सामना करता है, तो वह अक्सर स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लड़ नहीं पाता और जीत नहीं पाता।
🔸 सार में कहें तो:
“कम उम्र में आने वाली कठिनाइयाँ हमें मजबूत बनाती हैं,
और ज्यादा उम्र में आने वाली कठिनाइयाँ हमें आज़माती हैं।”
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