विचारों से स्वतंत्रता
हमारे विचार, विश्वास, पूर्वधारणाएँ, भय, पसंद-नापसंद—सब समय के साथ बने हुए हैं। कृष्णमूर्ति के अनुसार हम इन्हीं विचारों की कैद में जीते हैं। जब इंसान इन विचारों से मुक्त होता है, तभी वह वास्तविकता को जैसे है वैसे देख और समझ सकता है।
ज्ञान से स्वतंत्रता
हमारा अर्जित ज्ञान एक सीमा तक हमें बाँध देता है। जब हम केवल ज्ञात बातों के आधार पर सोचते हैं, तो नई बातों को समझना मुश्किल हो जाता है। कल के ज्ञान से मुक्त होकर ही मन आज नई बात सीख सकता है।
भय से स्वतंत्रता
भय इंसान को अनेक कार्यों से रोक देता है—मृत्यु का भय, अस्वीकार किए जाने का भय, खो देने का भय। ये सब हमारी स्वतंत्रता छीन लेते हैं। कृष्णमूर्ति का कहना था कि भय का सामना करके और उसे समझकर ही उससे मुक्ति पाई जा सकती है।
अधिकार से स्वतंत्रता
चाहे वह अपना अधिकार हो या दूसरों का, उससे स्वतंत्र होना आवश्यक है। जब मन किसी और के अधीन होता है, तब व्यक्ति सही रूप से कार्य नहीं कर पाता।
कृष्णमूर्ति मानते थे कि सत्य, प्रेम और विवेक को खोजने के लिए मन का पूरी तरह स्वतंत्र होना ज़रूरी है। इस आंतरिक स्वतंत्रता को पाने के लिए वे लोगों को प्रेरित करते थे। उनका कहना था कि यह किसी विशेष मार्ग से या किसी गुरु का अनुसरण करके प्राप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि केवल स्वयं को समझने के माध्यम से ही संभव है।
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