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फादर ऑफ इंडियन पैलिएटिव केयर
पैलिएटिव केयर
"भारतीय पैलिएटिव केयर के जनक" के रूप में प्रसिद्ध पद्मश्री डॉ. एम. राजगोपाल सर के ऑफिस में दो दिन की मीटिंग के लिए गया और उनसे मुलाक़ात की। यह बैठक मुख्य रूप से उत्तर भारत में पैलिएटिव केयर की अपर्याप्त स्थिति को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करने के तरीकों पर केंद्रित थी। कल मीटिंग हुई और आज मेडिकल टीम के साथ होम केयर विज़िटिंग में हिस्सा लिया। 8 मरीज़ों के घर गए, उन्हें ज़रूरी दवाइयाँ, काउंसलिंग दी गई और कुछ को एक महीने का राशन भी प्रदान किया गया।
पद्मश्री डॉ. एम. राजगोपाल ने अपना जीवन पैलिएटिव केयर के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया है। उनका जीवन और सेवा भारत में पैलिएटिव केयर के क्षेत्र में अमूल्य योगदान है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
2003 में स्थापित Pallium India, डॉ. राजगोपाल द्वारा बनाई गई एक राष्ट्रीय पैलिएटिव केयर संस्था है, जो पूरे भारत में केंद्र स्थापित कर रही है, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रही है, और मर्फीन जैसी दर्द निवारक दवाओं की उपलब्धता को आसान बनाने के लिए कानूनी संघर्ष भी कर रही है। भारत सरकार ने उनके इस योगदान के लिए 2018 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित कर चुकी हैं। वे WHO के Global Ambassador for Palliative Care भी हैं।
भारत में NDPS अधिनियम में संशोधन के लिए उन्होंने मानवाधिकार संगठनों, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति संस्थाओं और WHO के साथ मिलकर काम किया। वे "Top 100 Global Thinkers" की अंतरराष्ट्रीय सूची में भी शामिल किए जा चुके हैं।
1993 में कोडुंगल्लूर मेडिकल कॉलेज में काम करते हुए, उन्होंने भारत की पहली पैलिएटिव केयर क्लिनिक की शुरुआत की — Pain and Palliative Care Society (PPCS), Calicut — जो बाद में Kerala’s Neighbourhood Network in Palliative Care (NNPC) नामक एक सामुदायिक मॉडल में विकसित हुआ। यह मॉडल WHO द्वारा अनुकरणीय के रूप में स्वीकारा गया।
🩺 डॉ. राजगोपाल के उद्धरण:
"दर्द से राहत एक मानव अधिकार है। जब राहत संभव हो, तब किसी को दर्द में छोड़ देना अनैतिक और अमानवीय है।"
उनका दृष्टिकोण:
- स्वास्थ्य सेवा करुणा से भरपूर होनी चाहिए।
- जीवन के अंतिम चरण को सम्मानजनक और पीड़ारहित बनाना चाहिए।
- हर डॉक्टर को मरीज़ के दर्द को समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
डॉ. एम. राजगोपाल केवल एक व्यक्ति का नाम नहीं है — वे भारत में पैलिएटिव केयर आंदोलन का प्रतीक हैं। एक डॉक्टर, एक एक्टिविस्ट और एक संवेदनशील इंसान के रूप में वे आज भी हज़ारों लोगों के लिए प्रेरणा हैं।
भारत में पैलिएटिव केयर अब भी विकास के शुरुआती चरण में है और इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। WHO की "स्टेप लैडर" मॉडल को दर्द निवारण की दिशा में एक निर्णायक मोड़ माना जाता है। आधुनिक दर्द प्रबंधन की पहुंच और प्रभावशीलता यह तय करती है कि प्रत्येक डॉक्टर को दर्द निवारक दवाओं के उपयोग में दक्ष होना एक नैतिक कर्तव्य है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में कैंसर मरीज़ों में से केवल 3% को ही पर्याप्त दर्द राहत मिल पाती है, जो कि एक गंभीर नैतिक और कानूनी चूक है — Beneficence (कल्याणकारी सिद्धांत) के उल्लंघन के रूप में।
मॉर्फीन जैसे ओपिओइड दवाओं का उपयोग भारत में NDPS एक्ट के तहत कड़े नियमों से नियंत्रित है। अस्पतालों को इसके लिए पंजीकरण करवाना और विशेष प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है। अंतिम चरण के कैंसर मरीज़ों के लिए मौखिक मॉर्फीन उपलब्ध कराना गैर-वैज्ञानिक नियमों और राज्यवार विविध कानूनों के चलते एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग लाइसेंसिंग एजेंसियां और प्रक्रियाएं हैं। कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन ओपिओइड की उपलब्धता अभी भी सीमित है।
केरल नेटवर्क में 60 से अधिक यूनिट्स हैं जो 1.2 करोड़ लोगों को सेवा प्रदान करते हैं — यह दुनिया का सबसे बड़ा पैलिएटिव केयर नेटवर्क है। 2008 में, केरल पहला राज्य बना जिसने पॉलिसी स्तर पर पैलिएटिव केयर नीति घोषित की। कोझिकोड मॉडल (Calicut Model) को WHO द्वारा एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में मान्यता दी गई है।
पैलिएटिव केयर की कैंसर उपचार में भूमिका:
- 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिए विशेष प्रावधान किया गया है।
- कैंसर बजट का कम से कम 10% पैलिएटिव केयर के लिए आवंटित किया जाना चाहिए।
- ज़िला अस्पताल में 4 पैलिएटिव केयर बेड होने चाहिए।
- डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों को बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
- ज़िला अस्पताल में एक डॉक्टर को 2 सप्ताह का विशेष प्रशिक्षण अनिवार्य है।
शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान:
पैलिएटिव केयर के अभ्यास को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण और अनुसंधान की बड़ी भूमिका है। जीवन के अंतिम चरण में देखभाल के लिए विशेष कार्यक्रम डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए आयोजित किए जा रहे हैं। WHO इसके विकास के लिए तीन आधारशिला मानता है:
- सरकारी नीति
- शिक्षा
- दवाओं की उपलब्धता
देश में व्यापक और टिकाऊ पैलिएटिव केयर प्रणाली बनाने के लिए इनका होना आवश्यक है।
सभी डॉक्टरों और नर्सों के स्नातक पाठ्यक्रम में पैलिएटिव केयर को शामिल करना इस सेवा को फैलाने का सबसे प्रभावी तरीका है। इस साल से MD पैलिएटिव मेडिसिन को मान्यता मिलने से यह एक विशेषज्ञता के रूप में विकसित हो रही है। इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैलिएटिव केयर (IAPC) इस दिशा में वर्षों से कार्य कर रहा है।