जब वाल्मीकि ने अपनी रामायण पूरी की तो नारद उस रामायण से अधिक प्रभावित नहीं हुए। "यह अच्छी है, लेकिन हनुमान वाली रामायण बेहतर है।" उन्होंने कहा।
'हनुमान ने रामायण भी लिखी है।' वाल्मीकि को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई और यह देखने के लिए कि किसकी रामायण बेहतर है, वह हनुमान को खोजने निकल पड़े।
उन्होंने कदली-वन में, केले के पेड़ के सात चौड़े पत्तों पर रामायण लिखी हुई पाई।
उन्होंने उसे पढ़ा और पाया कि यह रामायण एकदम सही है। सही व्याकरण और शब्दावली, सधी हुई और माधुर्य से भरी, सबसे उत्तम। वह खुद को रोक नहीं पाए और रोने लगे।
'क्या यह इतनी बुरी है?' हनुमान ने पूछा।
'नहीं, यह बहुत अच्छी है', वाल्मीकि ने कहा।
'तो आप क्यों रो रहे हैं?' हनुमान ने पूछा।
'क्योंकि आपकी रामायण पढ़ने के बाद कोई मेरी रामायण नहीं पढ़ेगा।' वाल्मीकि ने उत्तर दिया।
यह सुनकर हनुमान ने केले के सातों पत्तों को फाड़ दिया और कहा, "अब कोई भी हनुमान की रामायण कभी नहीं पढ़ पायेगा।"
हनुमान ने कहा, 'आपको आपकी रामायण की जरूरत, मुझे मेरी रामायण की जरूरत से ज्यादा है। आपने अपनी रामायण इसलिए लिखी ताकि दुनिया वाल्मीकि को याद करे; मैंने अपनी रामायण इसलिए लिखी ताकि मुझे राम याद रहे।'
उस समय वाल्मीकि ने महसूस किया कि कैसे वे अपने काम के माध्यम से 'पहचान की इच्छा' में फंस गए थे।
उन्होंने अपने काम का इस्तेमाल 'खुद की पहचान की इच्छा' से मुक्त होने में नहीं किया था।
उन्होंने राम की कथा के सार को अपने मन की ग्रंथियों को खोलने के लिए नहीं किया था।
उनकी रामायण, उनकी महत्वाकांक्षा की उपज थी; लेकिन हनुमान की रामायण में शुद्ध भक्ति और स्नेह की उपज थी। इसलिए हनुमान की रामायण इतनी बेहतर बन पाई।
वाल्मीकि ने महसूस किया कि "राम से भी बड़ा ... राम का नाम है!"
हनुमान जैसे लोग हैं जो प्रसिद्ध नहीं होना चाहते हैं, वे सिर्फ अपना काम करते हैं और अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं।
हमारे जीवन में बहुत से अनसुने "हनुमान" हैं - माता-पिता, भाई- बहन, दादा-दादी, जीवनसाथी, दोस्त।
आइए उन्हें याद करें और उनके आभारी रहें।
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